मातृभूमि
मातृभूमि
ज़िन्दगी भी लुटा दूँ मैं अपने वतन की खातिर,
ये पावन वसुधा हमारी, ये मातृभूमि है मेरी।
सौ बार भी जन्म लूँ, नाम लिख दूँ तेरी खातिर,
है ऋषियों की ये पावन भूमि, छटा इसकी तो है निराली।
हर बच्चा इसका सेवक उसकी रक्षा की खातिर,
सर भी कटा दें अपना है जान उस पर वाऱी।
अमिट है इसकी संस्कृति, है अटल इसकी गाथा,
वर्णित जितना करें हम गाथा है इसकी न्यारी।
माँ ने दिया बेटा, पत्नि ने दिया सिंदूर
बच्चों ने भी पिता को वारा है जन्मभूमि पर,
रिश्तों की बलिवेदी पर रक्षा की है अपनी मातृभूमि की।
है प्रेम से ये सिंचित, है मिलन की धरा ये
है पर्वों का यँहा मेला, है रंगों की ये धरित्री।
सबसे जुदा भी है ये पुण्य अचला तो ऐसी मेरी,
गंगा के जैसी ये अकलुश निर्मल मातृभूमि है मेरी,
ये पावन धरणी मेरी, ये मातृभूमि मेरी।