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Lokanath Rath

Abstract

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Lokanath Rath

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मासूम सा नींद......

मासूम सा नींद......

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अब और कुछ कहने सुनने को रखा नहीं,

सारे दुनिया मे भी कोई ऐसा कहाँ देखा नहीं,

क्या खूब,देखो यारों चल रहा है कैसी लड़ाई ,

पर ये बात और नजरियां की, लातो की नहीं,

सपने ने तो दर्द से बोला,कितने दुःख पाई,

उसने बड़ी सुन्दर सज धज के तब आई,

जब ये मासूम सा नींद उसकी चाहत हुई,

जब ये सबकी दोनों आँखे रात को खुले नहीं,

जगमे तो सब सोये रहे, कोई भी जगा नहीं,

सिर्फ ये मासूम सा नींद था और तो कोई नहीं,

उसने जीभरके देखा पर कुछ कहा नहीं,

मे सपना, मन को तो रात भर सजाते रही,

मन तो बड़ा चंचल है, वो तो मुझे देखा नहीं,

सोया रहा वो सायद मासूम सा नींद मे कहीं,

अँधेरी रात मे शीतल चांदनी था छुपा नहीं,

सायद तब ये धरती की था यूँ कुछ कहानी,

या नील गगन की बाते तब मानी ये चांदनी,

वो सब डूबे थे अपने प्रेम मे मैने ये मानी,

और सपना, मासूम सा नींद को मानी अपनी,

पर जब रात गई, सबकी आँख खुली यहीँ,

ये मासूम सा नींद भूले मेरी वो सारी कहानी,

वो बेवफा है या और कुछ मुझे तो पता नहीं,

दर्द दिए मुझे,कियूँ की मैंने ये दिल लगानी?

अब सोचूँ, कभी और ऐसे मुझे नहीं करनी,

पर ये मासूम सा नींद तो देखो बड़ा जालिम,

बिन बुलाये मुझे तो करनी होंगी आनी जानी,

माना मे सपना हुँ, पर मेरी तो भी है कहानी,

और ये मासूम सा नींद,कियूँ वो समझा नहीं?????


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