मानव विचार
मानव विचार
रोटी से विचित्र कुछ भी नहीं है...
इंसान कमाने के लिए भी दौड़ता है...
और पचाने के लिए भी दौड़ता है ....
नहा कर गंगा में सब पाप धो आया ...
वहीं से धोये पापों का पानी भर लाया ....
वाह रे इन्सान,
तरीका तेरा समझ में नहीं आया.
पाप हमारी सोच से होता है,
शरीर से नहीं
तीर्थों का जल,
हमारे शरीर को साफ करता है,
हमारी सोच को नहीं।।
