माँ
माँ
वो कहते हैं माँ के चरणों में जन्नत होती है, सही कहते हैं ।
वो कहते हैं जहाँ मेरी माँ,वहीँ मेरा मंदिर है, यकीनन सही कहते हैं।।
दुनिया में सैकड़ों सिंहासन, पर सबसे ऊंचा व अप्रतिम माँ का स्थान है ।
जहाँ मेरी माँ का वास, वहीं रहता मेरा भगवान है।।
उसको नहीं देखा हमने कभी, पर उसकी मूरत क्या होगी।
ऐ माँ,ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी क्या होगी।।
तेरी गाली में जो सुकून था आज मन उसी को ढूंढता फिरता है,
तुझ से बिछड़ी हूँ जब से, सब कुछ सूना -सूना लगता है ।
तेरी गोद की गरमाहट आज भी याद आती है मुझे,
कैसे लफ़्ज़ों में बयान करूँ, तेरी याद कितना तड़पाती है मुझे ।
संवर जाए मेरा जीवन यही था ध्येय तेरे जीवन का,
तुझसे मेरा नहीं, मुझसे नाम हो तेरा, तेरा तो बस यही सपना था ।
लड़ती थी तुझसे ,तुझसे ही होती थी नाराज़,
वो भी क्या सुहावने दिन थे, हर पल स्मरण करती हूँ उनका आज ।
निःस्वार्थ प्रेम कैसे करते हैं, यह सीखना हो तो एक माँ से सीखो,
किसी के सपनों में उड़ान कैसे भरते हैं, यह एक माँ से ही सीखो ।
ऐ माँ तुझ से ही मेरा अस्तित्व, तुझी से मेरी पहचान है,
तुझसे ज़िन्दगी गुलज़ार,तेरे बिना एकदम बेकार, बेजान है ।
जब होती थी मैं वेदनाओं से ग्रसित, तेरे साथ सबसे पा लिया पार था,
अपने दुःख अपनी हँसी में दबा के, तूने रोशन किया मेरा संसार था ।
तेरी मनमोहक स्मृतियाँ आज भी होठों पर मुस्कान ले आती हैं
जादू कैसा है तुझ में तेरे सामने अप्सराएं फीकी पड़ जाती हैं।
नाज़ करती हूँ कि माँ के साथ का सानिंध्य मैंने पाया है ।
पूछ के देखो उनसे जिनकी माँ नहीं है, कि क्या कुछ उन्होंने गंवाया है।।
शुक्रिया नहीं अदा करती तुझे क्योंकि तेरा क़र्ज़ मिटाने की हैसियत नहीं मेरी ।
ऐ माँ तेरे बिन मेरी ज़िन्दगी का कोई वजूद नहीं, तू समूचा संसार, तू जान है मेरी ।।