मां
मां
सुना था बहुत पहले किसी से
मां जब बच्चों से दूर बहुत दूर दूसरी दुनिया में चली जाती है
तब चिड़िया बन उनके आसपास ही मंडराती है
कुछ दिनों से झरोखे पर मेरे रोज सुबह आती है एक चिड़िया
ची ची कर जगाती है मुझे मानो कहती है उठ जा भोर हुई
अब काम कर, जब पहले की तरह अलसाती हूं
तो ची ची की आवाज तेज कर देती है
दाने खाकर मेरे हाथों से दूर कहीं उड़ जाती है
कई बार सांझ की बेला में दरख़्तों से झांकती नजर आ जाती है
सिलसिला यह रोज का अब बन गया है
आशंकित मन हो जाता है तब जब आवाज ना आती ची ची की
दाने ले बाट निहारती मैं जैसे बचपन में राह निहारा करती थी वो