मां
मां
मां श्रृष्टि मे सब जीवों की ,
होती भाग्य विधाता ।
मां सा सुंदर सुखद मनोरम ,
दूजा नही कोई नाता ।।
गर्भ से ही बिन देखे हम पर ,
अपना प्यार दुलार लुटाती ।
अरमानो को पाल ह्रदय मे ,
सुन्दर सुन्दर ख्वाब सजाती ।।
बच्चे का मुख देख भूल ,
पीङाये सारी वह जाती ।
पाल पोस कर बङा करे ,
चलना कर पकड़ सिखाती ।।
देख देख कर वाल क्रिया ,
हंसती पाई जनु थाती ।
सन्तति का सुख सदा चाहती ,
दुख सारे सह जाती ।।
पढा लिखा कर योग्य बनाती ,
तव उन्नति को लख हरषाती ।
जीवन की हर वाधा से वह ,
आगे आकर हमे बचाती ।।
मात पिता साकार रूप है ,
जगती पर ईश्वर का ।
इन बिन पूजा यज्ञ दान सब ,
तीरथ व्रत है फीका ।।
