Neeru Nigam

Inspirational Children

4.5  

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माँ

माँ

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जन्म लेने के बाद से, 

जिस स्पर्श को तुम हो पहचानते, 

अपनी गोद मे तुमको

सुरक्षित महसूस जो है कराती, 

वह है माँ ।


हर रात तुम्हें सुलाने के लिए,

खुद पूरी रात जाग कर, 

अपने आँचल में छिपा कर, 

प्यार से लोरी जो है सुनाती,

वह है माँ। 


घर की अनगिनत जिम्मेदारियो के होते भी ,

तुम्हारी हर जरूरत को, 

तुम्हारी हर फरमाईश को,

जो भूले से भी नहीं भूल पाती, 

वह है माँ। 


अपनी उंगली पकड़ा,

तुम्हारे नन्हें कदमो को, 

पाँव के नीचे जमीन का एहसास, 

और खुद पर विश्वास का पहला पाठ, 

 जो है पढाती

वह है माँ। 


खुद अपनी सुध नहीं लेती, 

मगर तुम्हारी पसन्द, नापसन्द को, 

गहरी नींद में भी जो नहीं भूलती, 

वह है माँ। 


तुम किसी भी उम्र के हो, 

तुम्हारी हर तकलीफ को, 

जो चेहरा देखते ही, 

जान लेती, वह है माँ। 


तुम जीवन के किसी भी पढाव पर हो, 

तुमको कैसी भी समस्या हो, 

तुम्हारी हर समस्या को, 

चुटकियों में जो है सुलझा देती, 

वह है माँ।


तुम्हारे सुनहरे भविष्य के लिए ,

अपने सपनो को, तरक्की के रास्तो को, 

अपने ही हाथ जो है बदं कर देती, 

वह है माँ ।


तुम्हारी हर शिकायत को, 

तुम्हारे हर गुस्से को, 

पलो में जो है भूल जाती, 

वह है माँ। 


तुम्हें जीवन की हर ऊंच नीच, 

अच्छाई बुराई से परिचित करा,

तुम्हें जिम्मेदार होने का मतलब, 

जो है सिखाती, 

वह है माँ। 


तुम्हारे भूख से अंकुलाए पेट को, 

और संकुचाए मुंह को देख, 

अपने मुँह का निवाला भी, 

तुम्हारी थाली मे रख देती जो, 

वो है माँ। 


तुम किसी भी ओहदे पर हो, 

तुम कितने भी ऐशोआराम वाले हो, 

तुम्हें उस ओहदे तक पहुँचने का, 

रास्ता जो है बताती, 

वो है माँ। 


तुम किसी के प्यार में पड़ कर, 

भले ही स्वार्थी बन, उसे भूल जाओ, 

मगर आखिरी सांस तक, 

निस्वार्थ प्यार का पर्याय जो है होती, 

वह है माँ। 


तुम लाख ऐशोआराम में रह लो, 

चाहे पूरी दुनिया में घूम लो, 

मगर फिर भी सुकून का दूसरा नाम,

जो है होती

वह है माँ। 


दुनिया के किसी भी देश का, 

शहर का , कितना भी अच्छा

खाना खा लो पेट भर लो, 

मगर मन भरने को, 

दाल, आलू की सब्जी और घी लगी चपाती,

 जो है पकाती ,

वह है माँ ।


तुम अगर बेटे हो, 

कैसे अच्छे पति, दामाद बनो, 

तुम अगर एक बेटी हो, 

कैसे अच्छी पत्नी, बहू बनो, 

हर रिश्ते की परिभाषा, 

बारीकियाँ जो है सिखाती, 

वो है माँ। 


रिश्तो की खीर में, 

कितना दूध, चावल,

 तो कितनी चीनी डालनी है, 

तो रिश्तो की पनीर

कितनी आँच पर , कितनी देर, 

किन -किन मसालो के साथ पकानी है ,

यह सब तुम्हें जो है सिखाती, 

वो है माँ। 


एक परिवार ही नहीं, 

पूरे समाज को, 

मानवता के नये आयाम जो है देती, 

वो है माँ। 


राम और रावण का अन्तर, 

युधिष्ठिर और दुश्शासन का अन्तर, 

इस कलयुग में गीता का व्यवाहरिक ज्ञान, 

समय आने पर ताण्डव का महत्व, 

जो है सिखाती, 

वो है माँ। 


तुमको तुम्हारी ऊँचाई से भी ऊँचा, 

तुमको तुम्हारी गहराई से भी गहरा, 

सच कहूं तो, 

तुमको तुम्हारी क्षमता से भी ज्यादा, 

तुमको तुम्हारी अपेक्षाओं से भी

ज्यादा जो है जानती, 

वो है माँ। 


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