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Sushma Tiwari

Abstract

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Sushma Tiwari

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माँ तुम कितनी कुशल हो

माँ तुम कितनी कुशल हो

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माँ तुम कितनी कुशल हो

असंख्य रातें जाग बिताई

पीड़ा फिर भी कभी ना जताई

आँखों में आंसू बच्चों के दुख पर

हृदय से तुम कितनी निर्मल हो

माँ तुम कितनी कुशल हो


स्वयं के सपने यूँही त्याग दिए 

दूजों के सपने आँखों में फिर लिए 

तिल तिल जल कर रश्मि बन कर 

अनुभूति में फिर भी शीतल हो

माँ तुम कितनी कुशल हो


कई बार पथ से हम भटके होंगे 

लक्ष्य से चूक राह में अटके होंगे 

उस कठिन राह को आसान बनाती 

तुम देखो कितनी समतल हो 

माँ तुम कितनी कुशल हो 


हमे भूखे कभी ना छोड़ा तुमने 

खुद के लिए कुछ ना जोड़ा तुमने 

अन्नपूर्णा तुम हो कैसा भंडार तुम्हारा 

हर मौसम में फलित फसल हो 

माँ तुम कितनी कुशल हो 


जीवन में कितनी कड़ी धूप रही 

तुम शीतल छांव स्वरुप रही 

हर समस्या सुलझाने को तत्पर 

शांत चित्त तुम ममता का आंचल हो 

माँ तुम कितनी कुशल हो 


कितनी गलतियां कर देती माफ 

कलुषित संसार में हृदय से साफ 

भेद कभी ना हम में करती 

देखो ना तुम कितनी निश्छल हो 

माँ तुम कितनी कुशल हो 


बड़े हुए और पंख फैलाए 

गए दूर फिर लौट ना आए 

फुर्सत कहाँ तुम्हारी सुध ले 

तुम मांगती यही की सब सकुशल हो 

माँ तुम कितनी कुशल हो 


देखो अब कहीं नहीं सुख पाते हम 

काश बीते समय में लौट जाते हम 

चाहत अब सिर्फ तुम्हारे आँचल की 

कुटिया लगे संसार ये, तुम राजमहल हो

हाँ माँ तुम कितनी कुशल हो।


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