मां तुम कहां?
मां तुम कहां?
ढूंढता रहता हूं अब तुम्हें,
उन पुरानी मकानों में,
दीवारों के निशानों में,
गुजरे जमानों में,
मां तुम कहां ?
कभी किताबों में,
कभी दास्तानों में,
कभी पुराने सामानों में,
कभी उलझे सवालों में,
मां तुम कहां?
फिर रुकता हूं ,खोजता हूं...
दिख जाते हैं तुम्हारे कुछ निशा पर
मां तुम कहां ?
आराम मिलता है कुछ पल के लिए फिर ढूंढता हूं
वो 'आंचल 'जहां मिलते थे सुकून के ढेर सारे पल
सोचता हूं फिर,मां तुम कहां ?
यादों में भी ,सपनों में भी वह लोरियां आकर मधुर गीत सुना जाती है...
फिर अचानक याद आता है -
मां तुम कहां ?
दिल को मिलती है ठंडक उस घड़ी जब बिटिया आकर पूछती है -
पापा क्या ढूंढते हो?
मैं तो हूं यहां !
मैं देखता रह जाता हूं उसे...
पाता हूं तुम्हारी छवि कुछ क्षण के लिए..
और फिर भूल जाता हूं कि
मां तुम हो कहां?
