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SIJI GOPAL

Drama

2.7  

SIJI GOPAL

Drama

माँ - नवरसों की देवी

माँ - नवरसों की देवी

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माँ श्रृंगार रस की देवी है

वियोग में आँखें नम, संयोग मे आलिंगन

जैसे मरुभूमि मे पहली बरखा की चादर है

तब माँ श्रृंगार रस की देवी है।


माँ हास्य रस की देवी है

गुदगुदी करती, मेरे संग तुतलाती,

जैसे खिलती कली को ओस का चुंबन है

तब माँ हास्य रस की देवी है।


माँ करुण रस की देवी है

दिल का रुदन, विरह की वेदना

जैसे बहते हुए काजल की बौछार है

तब माँ करुण रस की देवी है।


माँ रौद्र रस की देवी है

दैत्यों का संहार, शत्रु का विनाश

कभी प्रकृति का एक प्रचंड रूप है

तब माँ रौद्र रस की देवी है।


माँ वीर रस की देवी है

यश और विजय की गर्जन है

जैसे झांसी की रानी का अवतार है

तब माँ वीर रस की देवी है।


माँ भय रस की देवी है।

चिन्ता है, आँखों मे व्याकुलता है,

उड़ना सिखाकर अब बेसब्री से इन्तज़ार है

तब माँ भय रस की देवी है।


माँ वीभत्स रस की देवी है।

शोषण, अत्याचार न सह पाएगी

काली का घृणा और ग्लानि भरा प्रतिकार है

तब माँ वीभत्स रस की देवी है।


माँ अद्भुत रस की देवी है।

पहला कदम मेरा, विस्मय भरी मुस्कान लाई

यशोदा ने जैसे कन्हैया मुख ब्रह्मांड देखा है

तब माँ अद्भुत रस की देवी है।


माँ शांत रस की देवी है

तपस्या और त्याग की सूरत है,

जैसे गंगा माँ अविरल, निस्वार्थ बहती है

तब माँ शांत रस की देवी है।


माँ नवरसों की देवी है

माँ तो भक्ति रस की परिभाषा है

माँ ममता में भगवान की मूरत है

माँ, तू जगत में वात्सल्य रस की देवी है।।


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