माँ (ग़ज़ल)
माँ (ग़ज़ल)
बेटा हूँ तेरा, तू ही जरूरत बनी रही।
आती ओ जाती सांस की चाहत बनी रही।
पढ़ डाले माँ कसीदे हज़ारो तेरे लिए
मेरे क़लम में माँ की ही शिरकत बनी रही।
माँगा खुदा से कुछ भी ज़माने के वास्ते
मुझपे खुदा की तब से ही रहमत बनी रही।
माँ की दुआओं का मुझे लगता है ये असर,
कमजोर से बदन में भी ताक़त बनी रही
माँ चाहती है पास में बेटा सदा रहे,
बेटे के मन में सिर्फ ये दौलत बनी रही।
चिंता हज़ार छोड़ के बेटे की सोचती,
बेटे के ज्वर से माँ को हरारत बनी रही।
तोड़ा था दिल मेरा जहां ने जोर से "कमल",
यह वजह माँ थी मुझमें ये हिम्मत बनी रही।