माॅं वीणावादिनी वन्दना
माॅं वीणावादिनी वन्दना
हे वीणा धारिणी कवि कल्याणी मातु कृपा मो पर कीजे।
हे! सुरमोदिनी हेे ! कमलासिनी मातु दया मो पर कीजे।।
रस छंद बहाऊॅं गुण माॅं गाऊॅं, कंठ में मधु रस स्वर दे दो।
हृद मैं हर्षाऊॅं वंदन गाऊॅं, मां ज्ञान पुंज हृद में भर दो।।
हे ! पद्मासिनी सुमधुरभाषिनी, मनवीणा झंकृत कर दे।
हे ! ज्ञान प्रवाहिनी वेद प्रवाहो, निर्मल अन्तर्मन कर दे।।
कमल सुशोभित अति मन मोहित, सुर नर मुनि मां गुण गाते।
पट धवल सुहावन अति मन भावन,भक्त तुम्हें निसदिन ध्याते।।
सप्तम स्वर गुंजित जनहृद हर्षित, महिमा तेरो जग गाए।
हे ! विद्यादायिनी सुख प्रदायिनी, शरण तेरे मां जग आए।।
शतदल शुचि कोमल चितवन चंञ्चल नयना दोउ कजरारे।
मां चरण पखारूॅं मातु मनाऊॅं, सब भक्त खड़े माता द्वारे ।।
सुर नर मुनि गावत ध्यान लगावत तेरो पद रजकंण शीश धरें।
यक्ष संब गंधर्वो जो धृति अर्णव, कर जोरि मातु से विनय करें।।
हे ! माॅं करूणामयी तू ममतामयी, हे मातु दयाला जगदात्री।
माॅं भव भयहारिणी कष्ट निवारिणी,तू ही है ऋद्धि सिद्धिदात्री।।
तुम्हें भक्त पुकारे आके द्वार तुम्हारे,शारदे विपदा दूर करो।
शुभदा विमला शुभ वर दे निज वरद हस्त मोहि शीश धरो।