लव इन जून (हास्य रस)
लव इन जून (हास्य रस)


कलियुग में
पर्यावरण बिगड़ा
गर्मी का पारा चढ़ा
लव इन जून
प्रेमी - प्रेमिका
था बुरा हाल
मूड हर पल खराब
कहाँ जाएँ? बड़ा सवाल,
भीड़ से भरा पड़ा हर मॉल
एकांत पाने को दो दिल बेहाल
सुबह से शाम गरमी का नाम
पारा चढ़ गया लव इन जून के नाम।
कोई इत्र न काम आए
पसीने से जी घबराए
बिसलेरी में पाकेट जाए
अब तो आशिकी भी न भाए।
शाम भी भयानक
हवा भी नहीं
रात में चाँद चाँदनी के साथ
प्रेमी बेचारा खाट के साथ
सोचे, क्यों प्यार हुआ जून में !!
हे भगवान! कुछ तो करो
बारिश करो, ठंडक दो,
मौसम सुहाना करो
प्रेमिका से मिलाओ
दिल को ठंडक पहुँचाओ
तभी कहूँगा...
ठंडा- ठंडा कूल- कूल
वरना आशिकी से दूर- दूर...