लव ग़ज़ल
लव ग़ज़ल
मैं बन जाऊँ शाम बनारस की,
तुम गंगा आरती घाट बनो ...
मैं बन जाऊँ मुख प्रेमवस इंसान का,
तुम मेरे किस्मत की ललाट बनो ...
मैं बन जाऊँ रौनक तुम्हारे घर की,
तुम सुरक्षा गेट बनो ...
मैं बन जाऊँ दुल्हन की लाल साड़ी,
तुम उसके जेवर का घूँघट बनो ...
मैं तुम्हारी और मेरी सारी यादें रख दूं,
तुम उसे छुपाने के लिए खुफिया कबाट बनो ...
