लोकतंत्र का पिंजरा
लोकतंत्र का पिंजरा
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शैतानों की साज़िश है,
इतने नियम-क़ानून बना दो,
की कोई शरीफ बच ना सके,
फिर वे अपना गुणगान ख़ुद गायेंगे।
तब हम पछतायेंगे और पूछेंगे,
किससे पूछ कर ये क़ानून बनाया था,
एक काग़ज़ी जवाब आएगा -
“लोकतंत्र है, जनाब! आप ही तो राजा हो।”
तो ज़ाहिर है जनाब,
ये क़ानून हमने ही ना जाने,
किसके इशारों पर बनाया था,
अब हमें ख़ुद नहीं पता -
“कब और कैसे?”
हम पिंजरे में क़ैद हो गये।