लोग कहते हैं मैं पत्थर हूं
लोग कहते हैं मैं पत्थर हूं
लोग कहते हैं मैं पत्थर हूं कभी झुकता नहीं हूं।
रोकता हूं बादलों को मैं कभी रुकता नहीं हूं।
मेरे चरणों में सजा दी हरी गलीचों सी वादियां।
मैं बादलों को छूता रहा घाटियां तकता नहीं हूं।
भेजता सागर मुझे बादलों का उपहार सुंदर ।
हिम किरिटों से जो सजाते मेरे ऊंचे मस्तकों को।
मेरे हिमकण भी पिघलकर सूर्य किरणों से सदा
दे रहे प्रतिदान नदियों का सागर को धरा को।
मेरे कंधे और माथे पर कभी ना पेड़ उगते।
ओढ चादर बर्फ की मस्तक मेरे आकाश तकते।
मैं कभी पंछियों को चोटियों पर बुलाता नहीं हूं।
मौन रहता हूं सदा औरों को दहलाता नहीं हूं।
जब कभी गुस्सा हुआ फटते हैं ज्वालामुखी लावा
और तब मैं उगलता हूं धुएं से आकाश काला।