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Sajida Akram

Abstract

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Sajida Akram

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"लम्हें"

"लम्हें"

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सुनहरी यादों के लम्हे, 

जब नटखट बचपन , 

करता नाना की पीठ पर 

घोड़ा बनाकर सवारी, 


कितने अनमोल होते वो, 

लम्हे जब सुनहरी यादों में, 

नन्हीं- मुन्नी करती अपनी, 

नटखट फरमाइशें कभी नाना, 

घोड़ा बन जाओ, कभी कहती, 


नाना कंधे पर बिठा कर सबसे 

ऊंचा बना दो, कभी फरमाइश होती, 

चाकलेट, आईसक्रीम, रसगुल्ले, 

खाने की नाना हर फरमाइशें, 


दौड़- दौड़ करते पूरी

 माँ रोकती क्या *पापा* 

हर वक़्त इन नटखट बदमाशों की, 

फरमाइशें करते क्यों पूरी, 


नाना का जवाब आता, 

स्नेह भरा "अरे" मैं क़िस्मत वाला हूँ

जो दी रब ने इतनी प्यारी परियां।


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