Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Saurabh Kumar

Abstract

3  

Saurabh Kumar

Abstract

लेने चैन चला हूँ

लेने चैन चला हूँ

1 min
731


सुख चैन खोके

लेने चैन चला हूँ।

मैं होके बेचैन

लेने चैन चला हूँ।


धूं-धूं कर जलता

जूनून का धुआँ।

मिटा के सब दूरी

दिन-रैन चला हूँ।


लहू-लुहान सांस-सांस

फिर भी अच्छा-भला हूँ।

नींदों को, जगती ख़्वाबों का

दे नैन चला हूँ।


बेशक, मैं नाज़ों से ही, पला हूँ

अब वक़्त के तकाजों में

आके ढला हूँ।

मैं शाँत हूँ

ये भ्रम है।


खुद के लिए मैं

खुद एक बला हूँ।


सीने को, जो चीरती

वो, खंजर भी चुभा दो।

मिटा दो मुझको !

जितनी है ताकत

उतनी लगा लो।


ख़ाक से राख को

अस्तित्व में ला दूं।

आँधियों की बेचैनी

कर बेचैन चला हूँ।


चट्टानों को तोड़ती

जल की धार की तरह।

एक वार काफी हो

उस तलवार की तरह।


हूँ अग्निकुंड मैं

लावों से बना हूँ।

अंदर तक, उबाल से

खूब सना हूँ।

मुझे, मत ही

तपन का

रौद्र रूप दिखाना!!

इसी जलन में

तो अब तक

मैं खूब जला हूँ।


धूं-धूं कर जलता

जूनून का धुआँ।

मिटा के सब दूरी

दिन-रैन चला हूँ।


मैं होके बेचैन

लेने चैन चला हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract