जेबें नहीं गरम
जेबें नहीं गरम
हसीं-ठिठोली तो
बस भूल ही जाना
दो-चार मीठी बातों का
भी लद गया ज़माना
कम्बख्त हाल ऐसा है
मिले ना दो रोटी नरम
भई जेबें नहीं गरम !
नाते-रिश्तेदारी
सूखी हुई फुलवारी
और दोस्ती-यारी
बेचारी वक़्त की मारी !!
कभी-कभी आये
खुद को भी शरम
भई जेबें नहीं गरम
लड़खड़ाते कदकुछ संभलें तो जरा
अभी चलना ही बस सीखा
चाहो दौड़ लगा लें !
मत लाओ ना
चेहरे पे सिकन !
दूर तक जाने का
रखे हुए हैं दम
मिलेंगें तुम्हें चाह से
थोड़े भी ना कम
पर अभी जो पूछो
भई जेबें नहीं गरम !
सुनते आये थे कि
कोई नहीं तुम्हारा
अब यकीं भी हो चला
जब देखा ये नजारा
मिट गए मन के
रहे-सहे भरम
भई जेबें नहीं गरम
बचे-खुचे चार दिन
बन लाचार ना गुजारेंगे
पर दिल में बसी प्यार की
सब बस्तियां उजारेंगे !
मिटा भेद अपने-पराये का
आ खुद से मिले हम!!
अब हम भी चलें करने
अपनी जेबें गरम
उठते-गिरते बाजार में
भाव ही भगवान है
टूटे हुए इस मन का भी
अभी से ये ऐलान है
"अब बोलियां लगाएंगे
कभी ज्यादा कभी कम"
शायद कभी भले थे
बन चलेंगे बेरहम
चल चले हैं करने
भई जेबें गरम।
