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Saurabh Kumar

Abstract

4  

Saurabh Kumar

Abstract

क्या से क्या हो गया

क्या से क्या हो गया

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तेरी बातों ने

चंद मुलाकातों ने

मन मोह लिया

सब सोह लिया।


तेरी आँखों के

कजरे धारों ने

सब टोह लिया

मन मोह लिया।


इश्क़ यूँ करना तुमसे

सजा हो गया

जज्बातों में बहना

बे वजह हो गया !

क्या सोचा था और

क्या से क्या हो गया।


तेरी बांहों के

दरमियाँ होके

एहसासों को

एक नशा हो गया।


तेरे चेहरे के

दो किनारों में

दिल मेरा कहीं

गुमशुदा हो गया।।


इश्क़ यूँ करना तुमसे

सजा हो गया

जज्बातों में बहना

बे वजह हो गया !

क्या सोचा था और

क्या से क्या हो गया।


तुझे पाने में

खुद को भुलाने में

दूर मुझसे

जमीं-आसमां हो गया।


तेरे ख़्वाबों को

रख के सिरहाने में

साथ चलता मेरा

कारवां खो गया।


इश्क़ यूँ करना तुमसे

सजा हो गया

जज्बातों में बहना

बे वजह हो गया !

क्या सोचा था और

क्या से क्या हो गया।


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