मेरा कौन सच्चा यार है
मेरा कौन सच्चा यार है
उठता गिरता
रुकता चलता
कभी संभल-संभल
कभी खूब मचल
जीवन की
यही धार है
ढूँढूं रूककर
मैं कुछ पल
मेरा कौन सच्चा यार है।
उष्ण शीतल
कोई निश्छल
कभी तिक्त कसाय
कभी मधुर सा फल
अम्बर भूतल
बस आज कल
ढूँढूं रूककर
मैं कुछ पल
मेरा कौन सच्चा यार है।
दिया बाती
जैसे साथी
करे जगमग
जो भाँति-भाँति
जो मिलन हो
तो त्यौहार है
ढूँढूं रूककर
मैं कुछ पल
मेरा कौन सच्चा यार है।
जैसे तृप्त करे
तृष्णा को जल
वाणी मधुर
स्पर्श कोमल
पतझड़ के बाद जो
सावन की बौछाड़ है
ढूँढूं रूककर
मैं कुछ पल
मेरा कौन सच्चा यार है।
