"लेखनी की हुंकार"
"लेखनी की हुंकार"
लेखनी ने जब अपनी,
हुंकार भर डाली।
मन मस्तिष्क के विचारों को,
रफ्तार दे डाली।।
शब्दों को मोतियों सा पिरोकर,
माला सी बना दिया।
मानो शब्दों का पूरा,
संसार बसा दिया।।
लेखनी की हुंकार ने ही,
इतिहास बना डाले।
भविष्य के लिए,
ज्ञान के द्वार खोल डाले।।
करते हैं शुक्रिया,
लेखनी की हुंकार का।
जिसने न जाने कितने,
नामों को रोशन किया।।