लड़की का परिचय
लड़की का परिचय
बड़ा सरल है उसका परिचय
बड़ी ही विस्तृत और विविध भूमिका है उसकी।
सिंधु घाटी की संस्कृति में
देवतुल्य, 'मातृ देवी' का रूप लेना।
वैदिक काल में
घोषा, विश्वरा, अपाला
के नाम से ऋचाएं रचना।
'गुरु माता' के रूप में प्रतिष्ठित होना।
मध्यकाल में
इनकी भूमिका, भ्रमण पर रोक लग जाना।
अभिनय में संस्कृत बोलने पर पाबंदी।
कालांतर में
‘सती', ‘विधवा’, ‘असूर्यपश्या’ की प्रथा,
‘यज्ञोपवीत’, ‘यज्ञ’, ‘पिंडदान’ पर रोक लग जाना।
इसके बाद
‘मनोरंजन के साधन’ बन कर उभरना,
बार गर्ल से बैले डांसर तक
‘क्या खूब’ से ‘सीटियां’ तक
कार्य क्षेत्र में एक अदृश्य दीवार से
कन्या भ्रूण हत्या तक
लिंग विभेद और कामलोलुप राह चलते —
ड्राइवर, खलासी, दुकानदार, ठेलेवाले तक
यह सारी भूमिका रही है उसकी।
अब तो समझ गए होगे—
बिल्कुल ठीक ! इसे ही ‘लड़की’ कहते हैं।