रोशनी की एक चमक
रोशनी की एक चमक
मुख्य पृष्ठ पर नजर पड़ते ही
मन सहम सा जाता है।
तमाम घोटाले,
सीबीआई की छापेमारी,
कन्या भ्रूण हत्या,
नाबालिग हत्याकांड,
शिक्षकों को महीनों से तनख्वाह न मिलना,
बयानबाजी - पलट बयानबाजी,
नए राजनीतिक तत्व - उनके यौगिक और मिश्रण,
नया समीकरण और उनके संतुलन के प्रयास,
पुलिस अतिक्रमण, गैंगरेप,
मजहब जात के नाम पर विभाजन की नई रूपरेखा;
उस पर विशद विवेचना,
नियमों की अवहेलना,
कानून की धज्जियां उड़ जाना,
कारोबारी दिग्गजों के अनगिनत कमरों वाले घर
और पत्नियों को दिए जाने वाले हवाई उपहार।
आंखें विस्फारित हो जाती हैं;
मन भ्रांतियों से भर जाता है।
कांपती हुई नजर
बायीं कॉलम के समाचार पर जाती है
‘झारखंड के बुधिया पढ़ना चाहती है,
वह प्रौढ़ शिक्षा केंद्र जाती है—
पूर्ण समाचार पृष्ठ 12 पर’।
उंगलियां तेजी से पृष्ठ 12
पहुंचने की दौड़ में जुट जाती हैं।
एक सुवासित, ठंडी हवा का झोंका
मन को छू जाता है
चलो इतने बड़े लोकतंत्र में
कहीं ‘रोशनी की एक चमक’ तो है।