लड़के भी घर छोड़ते हैं
लड़के भी घर छोड़ते हैं
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं...
जो कभी अंधेरे से लड़ते थे...
उजाले से डरने लगे है...
जो हमेशा अपनी बहनो से लड़ते थे..
वो आज चुप रहने लगे है....
खाने में भाई बहन से लड़ने वाले...
आज कुछ भी खा लेते है...
क्योकि लड़के भी घर छोड़ जाते हैं...
अपने बिस्तर पर किसी को न बैठने देने वाले...
आज सबके साथ सो जाते हैं...
हज़ारो ख्वाहिशे रखने वाले...
अब समझौता कर जाते हैं....
पैसा कमाने की चाहत में...
अपनो से अजनबी हो जाते हैं....
क्योकि साहब बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...
मम्मी के हाथों से खाने वाले..
आज खुद जले पके बना कर खाते हैं...
माँ बहन के हाथों का खाना....
अब वह कहा पाते है....
गाँव के वो लड़के...
हरे - भरे खेत, माँ, बाप...
सब पीछे छोड़ जाते हैं....
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं...
अक्सर तन्हाई में सबको याद करके...
आँसू बहते हैं...
जिम्मेदारी का बोझ सबसे जुदा कर जाते हैं....
मत पूछो इनका दर्द ये कैसे जी पाते हैं...
क्योकि लड़के भी घर छोड़ जाते हैं...
