लड़कियां
लड़कियां


तुम बिंदिया विंदिया लगाती बहुत
चाँद तारों से नज़ारे दिखाती बहुत
रस है तुम्हारे अधर में बड़े
चाव से इन्हें तुम छलकाती बहुत।
चढ़ के जवानी के परवाज़ पर
नफ़्स से सैर करने को जाती बहुत
आंख में सारे बवाल लेकर
तीर दिल पर हो तुम चलाती बहुत।
सारे परिधान और ये मेकअप तुम्हारा
हारे में क्या फतह करना चाहती हो तुम
हमको रिझाने की कोशिश तुम्हारी और
कोशिश में हर रोज़ जीत जाती हो तुम।
पर ये बताओ कसम खाकर
हाथ दिल पर रखकर, नज़रें मिलाकर
क्या वाकई है ये तुम्हारा रास्ता
कंगन और बिंदिया से क्या वास्ता ?
ये फांद जिससे जकड़ती हो तुम
दूसरे छोर पर पहले जकड़ ली जाती हो तुम
हर पासा पहले खुद पे ही डालकर
अनजान हो अपने ही जाल से तुम।
ये कैसी मोहब्बत तुम्हारी सनम
निकले थे उड़ने परों के सहारे
मगर जिंदगी तो अजब खेल कर गयी
देखो जेलर को जेल हो गयी।