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हरि शंकर गोयल

Comedy Classics Fantasy

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हरि शंकर गोयल

Comedy Classics Fantasy

लड़ाई और उसके बाद

लड़ाई और उसके बाद

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आज सुबह सुबह बैरण मुझसे लड़ पड़ी

 दो बेलण दो चिमटे लेकर मुझ पे पिल पड़ी 

इससे पहले कि मैं कुछ संभल पाता 

अपने ही बनाये हुए जाल में खुद गिर पड़ी।


मेरे शिकार की ख्वाहिश में खुद शिकार हो गई 

मुझे मारने पीटने की सारी कोशिशें बेकार हो गई 

मैं तो पतली गली से निकल कर बच गया 

बस, इसी बात पर वह खामखां नाराज हो गई।


जब कोई भी दांव उसका चल नहीं पाया 

और कोई भी उपाय उसे सूझ नहीं पाया 

तो काली काली आंखों से मोटे मोटे आंसू 

गिराकर अचूक ब्रह्मास्त्र मुझ पर चला दिया।


मनाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प ना था 

अनवरत युद्ध करने का मेरा कोई संकल्प ना था 

हम तो उस हसीन चेहरे पे मरते हैं यारों 

उनसे जुदा होकर रहने का कोई प्रकल्प ना था।


हमने उनके सामने संधि प्रस्ताव रख दिया 

मगर उन्होंने अपनी शर्तों की संख्या बढ़ा दी 

उसकी इस अदभुत संधि की शर्तों के अनुरूप 

हमने साड़ी गहनों में अपनी सारी पूंजी गंवा दी।


पूरे कंगाल होने के बाद शीत युद्ध खत्म हुआ है 

दिन भर एक कौर भी मुझे नसीब नहीं हुआ है 

"जान बची तो लाखों पाए" वाली कहावत याद कर 

भगवान को लाख लाख शुक्रिया अदा किया है


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