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लब ओ रुख़्सार की क़िस्मत से

लब ओ रुख़्सार की क़िस्मत से

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लब ओ रुख़्सार की क़िस्मत से दूरी

रहेगी ज़िंदगी कब तक अधूरी


बहुत तड़पा रहे हैं दो दिलों को

कई नाज़ुक तक़ाज़े ला-शुऊरी


कई रातों से है आग़ोश सूना

कई रातों की नींदें हैं अधूरी


ख़ुदा समझे जुनून-ए-जुस्तुजू को

सर-ए-मंज़िल भी है मंज़िल से दूरी


अजब अंदाज़ के शाम ओ सहर हैं

कोई तस्वीर हो जैसे अधूरी


ख़ुदा को भूल ही जाए ज़माना

हर इक जो आरज़ू हो जाए पूरी



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