लाजवाब !
लाजवाब !
तुझे परमात्मा कहूँ , दिल कहूँ, फरिश्ता कहूँ या जान कहूँ?
जो भी कहूँ लाजवाब कहूँ !
तेरे जैसा न कोई था, न है, और न होगा,
मेरी हर एक मुस्कान में बस नाम उसका है ,
ये तन, मन, ये रूह सब उसका है !
उसका प्यार तो बहती नदी सा है,
बस बहता ही जाता है !
कितने भी कांटें आए, वो बस खिलता ही जाता है ,
हर एक सांस में बस नाम उसका है ।
वो नहीं , तो ये ज़िंदगी नहीं,
और है तो ज़िंदगी हसीं ।
जो भी आता है, दहलीज़ पर उसके,
मुस्कुराकर वो लौटता है ।
न खुद मायूस होता है,
न किसी को होने देता है !
अब क्या कहूँ तुझे ?
बस जो भी कहूँ , लाजवाब कहूँ!

