लाज का पर्दा
लाज का पर्दा
दुनिया ने लाज का नाता, नारी से जो जोड़ा
ना जाने इस पर्दे के पीछे, उसे कितने टुकड़ो में तोड़ा।
स्वछंदता, स्वतंत्रता, शोखियां उसकी, सब जस्ब हो गयी,
लाज के बोझ के तले, उसकी ख्वाहिशें दफ्न हो गयी।
उसके जिस्म को सरेआम, निगाहों के तीरों से भेदकर
कहीं नोचकर, कहीं तानाकशी से रूह को घायल करते हो,
बेशर्मी की हदों से परे, लाज की दुहाई भी उसे देते हो
ये कमाल का दोगलापन कैसे वहन करते हो ?
नारी उठो,लाज,शर्म,शब्दो से परे तुम्हारा अपना एक मुकाम है,
तुम्हारे अस्तित्व को जो बंदी बना दे,नाहक वो ऐहतराम है,
शिव शक्ति के इस संसार में, सबकी सामान महत्ता है,
शब्दों के इस नागपाश में, दोगले समाज ने तुम्हे जकड़ा है।