लाडली
लाडली


मैं बेटी हूँ नसीब वालों के घर जन्म पाती हूँ
कहीं "लाडली" तो कहीं उदासी का सबब बन जाती हूँ।
नाज़ुक से कंधो पे होता है बोझ बचपन से
कहीं मर्यादा और समाज के चलते
अपनी दहलीज़ में सिमट के रह जाती हूँ।
और कहीं ऊँची उड़ान को भरने
अपने सपने को जीने का हौसला पाती हूँ
मैं बेटी हूँ नसीब वालों के घर जन्म पाती हूँ।
पराया धन समझ कर पराया कर देते हैं कुछ मुझको
बिना छत के मकानों से बेगाना कर देते हैं कुछ मुझको
और कहीं घर की रौनक सम्पन्नता समझी जाती हूँ
मैं बेटी हूँ नसीब वालों के घर जन्म पाती हूँ।
है अजब विडंबना ये न पीहर मेरा ना पिया घर मेरा
जहाँ अपनेपन से इक उम्र गुजार आती हूँ&n
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फिर भी घर-घर नवदीन पूँजी जाती हूँ
मैं बेटी हूँ नसीब वालों के घर जन्म पाती हूँ।
हैं महान वो माता-पीता जो करते हैं दान बेटी का
अपने कलजे के टुकड़े को विदा करने की नियति का
क्योंक़ि ये रीत चली आयी है बेटी है तो तो विदाई है
फिर भी मैं सारी उम्र माँ-बाबा की अमानत कहलाती हूँ
मैं बेटी हूँ नसीब वालों के घर जन्म पाती हूँ।
है कुछ के नसीब अच्छे जो
मिलता है परिवार उनको घर जैसा
वरना कहीं तो बस नाम के हैं रिश्ते
और बेटियां बोझ समझी जाती हैं।
काश ईश्वर देता अधिकार हर बेटी को
अपना घर चुनने का
जहां हर बेटी नाज़ो से पाली जाती है
और "लाडली" कहलाती है
और "लाडली" कहलाती है।