STORYMIRROR

Umesh Shukla

Classics Thriller

4  

Umesh Shukla

Classics Thriller

लाचार जन की हाय

लाचार जन की हाय

1 min
219

जहां मनुष्यता को बिसरा कर

बस भवन निर्माण पर हो जोर

उस राष्ट्र और समाज की दशा

सदा सर्वदा रहती है कमजोर


भवनों से यदि हो जाता मानव

का चहुंमुखी विकास व उत्थान

तो कभी गर्त में नहीं समाए होते

जार निकोलस जैसे नृप महान


मानवता जहां सिसकती रहती

किसी के पहलू में सिर छिपाय

उस राष्ट्र के नेताओं को खा जाती

है बेबस और लाचार जन की हाय।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics