क्यूँ !
क्यूँ !
क्यूँ न लिख लूँ ,
मैं तुझे
क्यूँ न पढ़ लूँ ,
मैं ।
क्यूँ न समझूँ ,
मैं तुझे
क्यूँ न जानूँ,
मैं।
इतनी भी क्या,
मुश्किल
जो न समझ सकूँ,
मैं।
इतनी भी क्या,
मुश्किल
जो न पढ़ सकूँ तुझे,
मैं।
इतनी भी क्या,
मुश्किल
जो न लिख सकूँ तुझे,
मैं।
तू चन्दा सी है,
उज्जवल
तू जल सी है,
निर्मल
तू ख़ुद में ही है ,
अम्बर
तू ख़ुद से ही,
समंदर
तू बहती मन की,
धारा
तू धड़कन का,
सहारा।

