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Rudra Prakash Mishra

Tragedy

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Rudra Prakash Mishra

Tragedy

क्यूँ कहीं नहीं मिलती

क्यूँ कहीं नहीं मिलती

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अजब वीरानगी है मरघट सी ,

जिन्दगी , क्यूँ कहीं नहीं मिलती ।

गूँजती थी जो एक ज़माने में ,

ऐ हँसी , क्यूँ कहीं नहीं मिलती ।

हर एक शख़्श परेशां सा है ,

सबके चेहरे पे बदहवासी है ।

झलकती थी हर एक चेहरे पे ,

ऐ ख़ुशी , क्यूँ कहीं नहीं मिलती ।

दौर आया है जाने ये कैसा ,

इक अजब दुश्मनी का आलम है ।

मिटा दे जो हर एक शिकवे को ,

दोस्ती , क्यूँ कहीं नहीं मिलती ।



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