क्यों स्वयं की दोषी है नारी ?
क्यों स्वयं की दोषी है नारी ?
है वो सभ्यता है वो आधार
जिससे उत्पन्न है यह संसार।
चाहिए था हर एक को साम्राज्य
पहनना था सबको एकल ताज।
दी इसलिये उसने अपनी ही प्रजाति को हार
जिससे उत्पन्न है यह संसार।
किया उसको प्रताड़ित और कभी सति
हुआ मर्यादा का उल्लंघन उसके प्रति।
किया उसने ही अपने विभिन्न रूपों पर अत्याचार
जिससे उत्पन्न है यह संसार।
उन्हीं अत्याचारों पर ठहरा है यह प्रश्न चिन्ह
किया क्यों उसने ही अपने ही अस्तित्व को भिन्न छिन।
कब तक अपनी अवस्थाओं का करेगी वो धिक्कार
जिससे उत्पन्न है यह संसार।
लगा दिया खुद के विस्तार में भी अवरोध
देख अपनी संख्या अब क्यों करती है शोक।
किया भ्रूण में भी खुद का तिरस्कार
जिससे उत्पन्न है यह संसार।
