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अंत नहीं है शुरुआत

अंत नहीं है शुरुआत

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फूलवारी है जीवन, निराशा क्यों बोता है ।

हँस के तो देख, जीवन क्या नहीं देता है ।।


होते न यदि भाई विरुद्ध ।

तो न होता महाभारत का युद्ध ।।

बढ़ता कैसे फिर अच्छाई का मान ।

सम्भव न था, फिर भगवत गीता का गान ।।

हर एक तार जब दूसरे से जुड़ता है ।

क्रम सृष्टि का तभी बढ़ता है ।।

फूलवारी है जीवन, निराशा क्यों बोता है ।

हँस के तो देख, जीवन क्या नहीं देता है


था वो भी मनुष्य सज्जन ।

पूर्ण किया था, जिसने अपना वचन ।।

जिससे की पूर्ण अपनी कुंठा की आस ।

दिया इक माँ ने पुत्र को वनवास ।।

लगा तब उनकी गृहस्थी पर भी ग्रहण ।

हुआ जब, मईया का अपहरण ।।

स्मरण हुई विसराई हुई मारुती जी को शक्ति ।

हुआ अंत, मिली तब रावण को मुक्ति ।।

हर पल दूसरे पल का गवाह बनता है ।

परीक्षाओं के भँवर में ही, जीवन चलता है ।।

फूलवारी है जीवन, निराशा क्यों बोता है ।

हँस के तो देख, जीवन क्या नहीं देता है ।।


जब हुआ एक पिता को घमंड ।

आया पुत्र, लेकर भक्ति का ओज प्रचंड ।।

था बालक जो सांसारिकता से निर्मोह ।

किया पिता ने, उसका विद्रोह ।।

समाप्त करने विनाशकारी अहंकार ।

हुआ नरसिंह का, तब अवतार ।।

समझानी, बस इतनी सी है बात ।

अंत नही, नयी क्रम की, है शुरुआत ।।


हे नर! दुखी क्यों, मन को करता है ।

ठहर जा, सब कुछ अच्छे के लिए होता है ।।

जब वो भी हर पीड़ा सहता है ।

फिर तू क्यों संघर्षो से डरता है ।।

फूलवारी है जीवन, निराशा क्यों बोता है ।

हँस के तो देख, जीवन क्या नहीं देता है ।।



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