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Rashmi Kulwant Chawla

Drama

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Rashmi Kulwant Chawla

Drama

व्यथा

व्यथा

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निशब्द नहीं,

मौन हूँ मैं।

ढूंढती स्वयं को,

आखिर कौन हूँ मैं।


आया था कुछ हृदय में,

छूटा न लेकर सब्र।

सजी थी मुस्कान मगर,

कम्पित थे वे अधर।


सोचा आज सब,

दूँ मैं बोल।

हर तार चित के,

दूँ मैं खोल।


खोला जब मन का द्वार

किया भावनाओं का विस्तार

हुआ समक्ष प्रदर्शित

असहनीय प्रकोप।


चरित्रहीनता का भी,

लगा आरोप

थी शांत,

किये सहन हर बाण।


क्योंकि

था नहीं, पास मेरे प्रमाण

टूटा तब धैर्य,

छूटी सब इच्छा।


हुई कलयुग में

जब अग्निपरीक्षा

हुआ विश्वास में,

विष का वास।


परछाई ने भी,

छोड़ा साथ

अब समझी जीवन की यह पहेली

थी स्त्री इसलिये थी अकेली।।


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