क्यों परेशान सा हर इंसान है ?
क्यों परेशान सा हर इंसान है ?
क्या है तेरा रूप? क्या है तेरा नाम ?
कहाँ पर तू रहता? क्या है तेरा काम ?
ये दुनिया तूने बनाई क्यों ? रूहें इसमें बसाई क्यों ?
ये मोह के धागे, ये लालच की जंजीरें,
ये उलझे से रिश्ते, ये शिकन की लकीरे,
ये धागे क्यों न टूटे? ये लालच क्यों न छूटे?
ये रिश्ते टूटे फूटे, क्यों रहते, जैसे घुटे घुटे ?
दुनिया ढूंढे डगर डगर, फिर भी अधूरा क्यों है सफर?
मन्दिर मस्जिद शहर शहर, फिर क्यों रूठा हर पहर ?
अगर तुम सत्य हो तो, हर तरफ क्यों झूठ का व्यापार है?
तुम शिव हो तो, क्यों असार सा ये संसार है?
इतना चुप कैसे रहते हो ? पता नहीं यह सब कैसे सहते हो?
क्या यह था तुम्हारा सपना ? जहाँ हर कोई पराया, क्यों नहीं कोई अपना ?
कहते तुझे भगवान है, कहाँ है तू ? अब तो आजा!
छुपा है क्यूं ? आकर यह उलझन सुलझा जा।
दुनिया कहती तू व्याप्त हर जगह, पर दिखता नहीं क्या है वजह ?
पर तू तो भगवान है, सुना है बड़ा दयावान है !
फिर परेशान हैरान सा, यहाँ क्यों हर इंसान है ?
