सर्वशक्तिमान
सर्वशक्तिमान
गर्मियों में पवन लहराते चारो ओर
ठुमक मटकते ठंडक फैलाए स्वर्ग लोक की ओर।
शुष्क बरी खाल के अंदर
टिप - टिप कर बरसाते निकाय के ओर।
बजती जब बिजली की ढोल
फिर न करते उसपे और जोर।
गिरते है फिर खिलते है
खीले तो हि फल मिलते है।
आगे बड़ते न रुकते यह जल,
संसार को ही पहुंचाते मुफ्त का ये जल।
आसमान की ओर जब उरते पंछी की फॉज,
कोइ उपर या नीचे से बढ़ते आगे की ओर।
देखो फिर आया वह मन के अंदर
अध्यात्मत से खोजो अपने मन के अंदर
महसूस कर चल उसके अंदर
सच्चा स्वभाव हि है सर्वशक्तिमान के अंदर।
