क्यों नकल करें पश्चिम की
क्यों नकल करें पश्चिम की
क्यों नकल करें पश्चिम की हम अपने भाग्य विधाता हैं,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बेला में अपना नवसंवत्सर आता है,
जब रंग-बिरंगे फूलों से धरा का हर कोना सज जाता है,
देख सस्य श्यामला धरती सुसज्जित अन्तर्मन हर्षाता है।
पुष्पों की पीली चादर से प्रकृति का तन-मन मदमाता है,
यही समय है जब परम पुरुष प्रकृति से मिलने आता है,
सुन पंचम स्वर कोयल का हर मन मंत्रमुग्ध हो जाता है,
धन्य है हम नव संवत्सर से अपना इतना सुंदर नाता है।
कल्प, सृष्टि का प्रारंभिक दिन, यहीं से परिवर्तन छाता है,
यही मधुमास माता के शुभ दर्शन का पल पावन लाता है,
गणगौर पूजती कन्याओं का स्वर मन को बहुत लुभाता है,
जब चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की बेला में नव संवत्सर आता है।
हम उस पूरब देश के वासी जहां रवि सर्वप्रथम ही आता है,
पकती फसलों पे रवि, किरणों से आभास स्वर्ण सा लाता है,
वातावरण का देख उल्लास नया मन आह्लादित हो जाता है,
विचार करो नवसंवत्सर का प्रकृति से कितना सुंदर नाता है।
पके अन्न के दाने आम की बौरों से सर्वसुवासित हो जाता है,
चहुंओर पकी फसल का दर्शन, आत्मबल उत्साह जगाता है,
कहीं धूल नहीं कुत्सित कीच नहीं, सर्वस्व शुद्ध हो जाता है,
इस निर्मलता कोमलता में ही अपना नव संवत्सर आता है।
खेतों में हलचल, हंसिये का खरखर मंगलस्वर बन जाता है,
देख फसलों के पकते दाने कृषकों का मन भ्रमर ये गाता है,
ऐसा सुंदर समय तो बस अपने नव संवत्सर पर ही आता है,
क्यों नकल करें पश्चिम की जब ये अपने मन को यूं भाता है।