क्या यही प्यार है
क्या यही प्यार है
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मत मांगो प्रेम कभी, बाँटोगे अपने-आप आ जाएगा।
यदि रहो उम्मीदों व अपेक्षाओं से विरक्त आ जाएगा।
तुमने जिसे माना प्रेम, असल में सच्चा प्रेम होता नहीं।
लालच व स्वामी समझने की प्रवृत्ति होती है प्रेम नहीं।
प्रेम तकरीबन अहंकार के घोड़े की सवारी नहीं होता।
उसके वजूद के साथ जो है, वह आनंदमग्न ही होता।
प्रेम अस्तित्व की स्थिति अन्य से संबंध कहाँ हुआ है।
प्रेम अनंत, असीम, शब्दों में कभी व्यक्त नहीं हुआ है।
मन से हटा अँधेरा जीवन को अपूर्व अहसास देता है।
समर्पण-प्रस्तुत उदात्त प्रेम सागर-सा गम्भीर होता है।