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Janardan Gore

Abstract

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Janardan Gore

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"क्या सोचा था"

"क्या सोचा था"

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"क्या सोचाक्या सोचा था, क्या पाया हैं

इस जिन्दगी में आकर बहुत कुछ खोया है !!१!!


हजार देखे खुशियो के सपने

संग हमेशा दुखो का साया हैं !!२!!


क्या सोचा था, क्या पाया हैं

इस जिन्दगी में आकर बहुत कुछ खोया है !!


जागता हुंआ नसिबा ना जाने

कबसे सोया हैं...

रंग जिने का मानो जैसे उड़ गया है.... 


इस जिन्दगी में आकर

बहुत कुछ खोया है !


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