क्या नारी तेरी यही कहानी।
क्या नारी तेरी यही कहानी।
चबुतरे पर बैठी,
ज़िन्दगी के पन्ने पलटती
क्या नारी तेरी यही कहानी।
जीवन मिला जबसे, खटकी आंख तबसे।
बापु की फटकार,भाई से तकरार
फिर सपनों की डोली सजा,
पहुँची साजन के द्वार।
पैरों तले ज़मीन खिसकी,
सपने हुये तार तार।
सब सहा मां बनी ।
लगा जीवन हुआ निहाल।
बेटों ने भी कहाँ सम्हाला,
दिया दर्द बेहिसाब।
क्या कमी रह गई,
क्यूँ हो गई मैं उन पर भार।
अपने अस्तित्व को तलाशती,
सब के लिए खुशीयां बटोरती
फिरती में मंदिर मंदिर, द्वार द्वार।
थक गई निगाहे, थम गई राहें
पर कब तुम उत्तर जान पाई।
उलझनें सुलझा सुलझा,
थक गई हर बार।
तिरस्कृत हुई, अपमानित हुई प्रताड़ित भी हुई,
क्या यही है जिंदगी।
एक पल ना हारी ना रूकी
पर सम्मानित ना हुई कभी।
क्यों नुमाइश करूं, मैं अपने माथे पर शिकन की।
जब लड़ना है खुद को, खुद से ही।
अब छडी टेकती जाऊं,और पुछुं
प्रभु क्यों नारी देह, मैने पाई।
