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syed azhar sajjad

Classics

5.0  

syed azhar sajjad

Classics

क्या करें

क्या करें

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एक तलातुम दिल में बरपा हो गया है क्या करें,

फिर तुझे खोने का ख़दशा हो गया है क्या करें।


हक़शनासों की हक़ीक़त जानता है दिल मेरा,

ये तो एक शीशे के जैसा हो गया है क्या करें।


चार मिस्रों में मुकम्म्मल हो गई है ये ग़ज़ल,

चार मिस्रों ही में मक़ता हो गया है क्या करें।


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