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syed azhar sajjad

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4.9  

syed azhar sajjad

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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आज निकली है मेरी जान ख़ुदा खैर करे,

जाने क्यों दिल है परेशान ख़ुदा खैर करे।


दर्मियान छिड़ गई जो बात पुरानी थी कोई, 

आज बिखरे मेरे अरमान ख़ुदा खैर करे।


क्या यूंही कोई बिछड़ता है कहीं अपनों से, 

लुट गया इश्क का सामान ख़ुदा खैर करे।


बातें उनसे तो मेरी हो नहीं पाएगी कभी, 

कर दूँ क्या इश्क का एलान ख़ुदा खैर करे।


अब नहीं चाहिए लज्जत मुझे मोहब्बत की,

चंद लम्हों का हूँ मेहमान ख़ुदा खैर करे। 


अजहर नहीं अब बस में तेरे रबत बचाना,

क्या नहीं कोई निगहबान ख़ुदा खैर करे।


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