क्या कहूँ किससे कहूँ
क्या कहूँ किससे कहूँ
क्या कहूं किस किससे कहूं
जिससे थी अभिलाषा वो ही
बन गया निराशा
कितने सपने थे सजाये
जब आया था पहली बार बाहों में
कोई उमंग नहीं
कोई रंग नहीं अब मेरी राहो में
क्या कहूँ किस किस किससे कहूँ
खुशियों चमक
चेहरे की दमक
दिल की चाहत सब खो गये
किलकारी से गुंजा था घर आंगन
जैसे चिड़ियों की सुबह की चहचह।ट
मुस्कान पे जिसकी वारी जाये।
क्या कहूँ किस किस किससे कहूँ
जिससे थी अभिलाषा
वो ही बन गया निराशा।
माँ का प्यारा वो राज दुलारा
अपनी ही धुन में रहता है खोया
क्या रात क्या दिन जाने
कौन से ख़्वाब में खोया।
फिक्र है इस बात की,
लक्ष्य उसका कुछ नहीं
क्या गलत क्या सही,
फिक्र उसको नहीं
चाहता था में बन जाये
वो भी एक महामानव
नाश कर सके जो समूल दानव।