STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Abstract

4  

Surendra kumar singh

Abstract

अच्छा लग रहा है

अच्छा लग रहा है

1 min
412

कितना अच्छा लग रहा है

तुम्हारी याद आ रही है,

और लग रहा है

कि तुम यहीं हो

मेरे आस पास

अपनी सहृदयता के साथ

याद दिलाते हुये

मुझे मेरे कर्तव्य।

हवा में अजीब सी

सरगोशियां हैं

तुम्हारी अनुकृति सी

लहरा रही है हवा में,

और वही तुम्हारी आवाज

प्रतिध्वनि की तरह

गूंज रही है वातावरण में।

लगता है मौन बोल रहा है

और मैं सुन रहा हूँ।

देख लो यहाँ कोई है नहीं

तुम्हारी याद के सिवाय

हवा की सरगोशी के सिवाय।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract