क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया
ईश्वर के चरणों में शिद्दत से सिर झुकाए,
पूछती हूं आज खुद से,
क्या तूने खोया क्या पाया।
हार गई सब कुछ,
फिर भी हिम्मत का साथ पाया।
टूटा है विश्वास तुझसे,
ईश्वर तेरा अस्तित्व इस कलयुग में मैंने न पाया।
विश्वास था मुझे खुद से,
की तू देख रहा मुझे पृथ्वी तल पर,
दिया मैंने अपना परिचय सद कर्मपथ पर चल कर,
फिर भी हार गई क्यों मैं?
क्यों कृपा दृष्टि मैने न तेरी पाई,
पृथ्वी तल के रंग मंच पर अपनी जान में
सर्वश्रेष्ठ किरदार निभाया।
किया आदर्शों का अनुपालन,
फिर क्या मुझसे खता हुई ईश्वर,
की तेरा साथ न मैने पाया।
पूजती हूं आज भी पर,
पत्थर से हो तुम,
ऐसा एहसास मुझको कराया।
फिर भी ईश्वर तेरे चरणों में पूरी शिद्दत से सिर झुकाए।
फूंक ना चाहती हूं प्राण तेरी मूरत में,
अपनी पूजा को सफल बनाने को।
मेरी हिम्मत को ही तेरा आशीर्वाद समझ मैने अपनाया,
ईश्वर आज भी तेरे चरणों में शिद्दत से सिर मैंने झुकाया।