'वो'कौन है?
'वो'कौन है?
ढलती हुई हर शाम पूछती है।
बता तेरी नजर में 'वो' तेरा क्या है।
क्या वो याद है तेरी ख्वाहिशों की
जिसे तूने उसके संग जिया है।
या इक तबस्सुम तेरे लबों की
जो उसके ख्यालों से बावस्ता है।
है इक वजह तेरी तन्हाइयों की
जिसे तू ने ही खुद चुना है।
कि गुनगुनाता सा गीत कोई
जिसमे तेरा सूकून बसा है।
या एक उलझा बेनाम रिश्ताल
जो तेरे जहन मे सुलझा हुआ है।
वो एक आँसूं पलकों पे ठहरा
जिसको तूने ही रोका हुआ है।
या है वो तेरा आधा-अधूरा
जहाँ सब्र बेचैन ठहरा हुआ है।
ए शाम, तुझे मैं ना भी कुछ बताऊ,
पर तूने मुझको हर्फ-हर्फ पढा है।
हाँ , 'वो' है एक मीठा सा दर्द मेरा,
इस दिल से जिसने 'इश्क' खेला है।