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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Inspirational

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Inspirational

क्या हम बदल रहें

क्या हम बदल रहें

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वक्त की तुला 

बुला बुला

रही है सुना

तान बान खनक रहे

मानव मन झनक रहे

दशा दिशा बदल रहे,

लगता है

हम बदल रहे।

इक शोर हुजूम 

का लहराता है

गतिहीन होकर 

हर रूप में

जीवन ठहर जाता है

फिर कुछ वह कहते

कुछ वह भी 

कुछ कह जाते हैं

दलदल वही

धँसे सभी

जा रहे हैं,

लगता है

हम बदल रहे है।।


क्या अंतर 

बोलो सब जो खड़े

अंंगार उगलते

शब्दों के संग 

यह रूप रंग 

करता है दंग,

समय में ऐसे

>

हम कब कहाँ 

पले बढ़े,

एकरंग होकर हम

नयी ऊँचाई

हमेशा चले चढ़े,

अब बंटकर आपस में

हम किधर बढ़ रहे,

लगता है

हम बदल रहे।।


नयी किरण

झन झन कर

उम्मीद की

मन मन में झनक उठी

सच अन्तर्मन में

मोहक वाणी से आपके

कुछ दबी भावना

पूरे भाव संग 

मचल उठी

बदलते रंग 

औघड़ मलंग से आपके

सदा हर फन से गीला

सरोकार समाज का 

मुठ्ठी में रेत भाँति

धीरे धीरे फिसल रहे हैं,

लगता है

हम बदल रहे हैं।।

   


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